True Motivational Story On Life With Moral
जिंदगी व्यर्थ नहीं, हमारे जीने का ढंग व्यर्थ है
एक आदमी आत्म हत्या करना चाहता था, जब वो मरने के करीब जा रहा था. चट्टान पर से कूदने नदी में.
तो एक फ़क़ीर वहां ध्यान करता था तो उसने रोक लिया. फ़क़ीर ने कहा, भाई मेरी भी सुनो बात क्या है. क्यों मरने जाते हो. inspiring moral story on life.
उस आदमी ने कहा मेरे पास कुछ भी नहीं में सब कोशिश कर चूका, हार चूका. परमात्मा नाराज है, कुछ बात बनती नहीं. सब बिगड़ जाती है, "सोना छूता हूँ मिटटी हो जाती हैं", जिस दिशा में जाता हूँ वहीँ हार लगती हैं.
एक सीमा होती है, इस जिंदगी से में ऊब गया हूँ. मेरे पास कुछ भी नहीं में मारना चाहता हूँ. उस फ़क़ीर ने कहा मरने के पहले एक काम करजा. तुम तो मर ही जाओगे, मुझे थोड़ा लाभ हो जायेगा,
तो उसने कहा क्या काम हैं, फ़क़ीर ने कहा की ऐसा करो. इस गाँव का जो सम्राट हैं, वह मेरा मित्र हैं. थोड़ा झपकी-सनकी किस्म का आदमी है, अजीब चींजे इकट्ठी करने का उसका शौक है, में तेरी आँखें बिकवा देता हूँ, लाख रुपए कम से कम मिल जायेंगे. फिर तू मर जाना, वैसे भी तू तो मर ही रहा हैं.
और उसके मौंज में आजाये तो वो तेरे कान भी खरीद लेगा, तेरे दांत भी खरीद लेगा, सनकी किस्म का, वो इसी तरह के काम करता है. चल मेरे साथ. अब वो आदमी कुछ कह भी नहीं सका इस फ़क़ीर को, कहना भी क्या क्योंकि वो तो कह भी चूका था की मेरे पास कुछ भी नहीं है, मरने ही जा रहा हूँ.
फिर अचानक उस आदमी को ख्याल आया की लाख रूपया आँख का मिल सकता हैं, तो एक दम गरीब भी नहीं हूँ में, सम्राट के घर तक पहुँचते-पहुंचते उसने तय कर लिया की यह मामला ठीक नहीं हैं, की में आँख को बेंचू दू , वह मरने की तो भूल गया.
फ़क़ीर भीतर गया सम्राट को राजी कर लिया. इस आदमी को बुलाया सम्राट ने कहा ठीक है आँखें निकलवा लेते हैं लाख रुपये दे देंगे. उस आदमी ने कहा समझा क्या तुमने मुझे, आँख अपनी बेचूंगा. सम्राट ने कहा दाम अगर ज्यादा चाहिए तो वैसी बात करो 2 लाख ले लेना.
उस आदमी ने कहा में बेचना ही नहीं चाहता. कोई आदमी होश में अपनी आँखें बेचेगा उस आदमी ने कहा. फिर वो फ़क़ीर बोला लेकिन भाई तू तो कह रहा था तेरे पास कुछ है ही नहीं. तू मरने जा रहा था, उसमे आँख भी मरती, तेरे हाथ भी मरते, पैर भी मरते, तेरे कान भी मरते, सब मर जाता. और तू कहता था तेरे पास कुछ भी नहीं हैं.
और जब दस लाख आँख के मिल रहे हैं. सिर्फ आँख के मिल रहे, अभी और सामान बेच तेरा, करोड़ों दिलवा दूँ. वो आदमी तो खड़ा हो गया, उसने कहा हत्यारें हो तुम लोग, ये कोई बात है.
तो फ़क़ीर ने कहा फिर तेरा आत्म हत्या करने के बारें में क्या ख्याल हैं, उस आदमी ने कहा में मर नहीं सकता अब. अब मुझे पहली बार ख्याल आया, की मेरे पास आखें हैं, जिनको में दस लाख में नहीं बेच सकता.
लेकिन इन आँखों के लिए मैंने परमात्मा को कभी धन्यवाद नहीं दिया. में रोने ही रोते रहा, की मेरे पास यह नहीं हैं, में शिकायतें ही करता रहा. मेरी जिंदगी शिकायतों की एक लम्बी गाथा हैं, तुमने मुझे ठीक चेता दिया.
उस फ़क़ीर ने कहा इसीलिए में तुझे यहाँ ले आया था. अब तेरी मर्जी, जो करना हो वो कर. उस दिन से उस आदमी की जिंदगी बदली. शिकायत समाप्त हुई. प्रार्थना प्रारम्भ हुई. उस दिन से वो मंदिर में जाकर धन्यवाद देने लगा, की तेरी कितनी अनुकंपा हैं.
तूने मुझे आँखे दी जिन्हे में 10 लाख में नहीं बेच सकता. 10 लाख की बात क्या करोड़ में नहीं बेच सकता. तूने मुझे इतना दिया हैं, और मेरी कोई पात्रता भी नहीं. किस कारण दिया ये भी मुझे पता नहीं. तूने अपने प्रेम से ही दिया होगा, अपने अतिरिक्त से दिया होगा. तेरे पास बहुत हैं इसलिए दिया होगा. धन्यवाद तेरा बहुत धन्यवाद मुझे अब कुछ और नहीं चाहिए.
जो दिया हैं यही क्या कम हैं. और उस दिन से उस आदमीं की जिंदगी बदल गयी. उस दिन से वो दुखी आदमीं सुखी हो गया.
संदेश - हम अगर हमारे पास जो है, उसे देखना शुरू कर दें, तो जीवन ही स्वर्ग बन जाता हैं. कभी आप भी सोचना बैठ कर, की कितने में आँख बेचनी है. ये जिंदगी बहुमूल्य हैं, हम इसे किसी मूल्य पर बेचने को राजी नहीं हो सकते. और हमने इस जिंदगी को कभी धन्यवाद भी नहीं दिया.
*God Gifted Life*
यह जो रोज पक्षी गीत गातें हैं. अगर हमारे पास कान न होते. तो हम पक्षियों का गीत सुनने के लिए कितने रुपये देने को राजी हो सकते थे. यह वृक्षों की हरियाली, अगर हमारे पास आँखें न होती, तो हम यह हरियाली देखने को कितने रुपये देने को राजी नहीं हो सकते थे.
मगर क्या कभी तुमने हरियाली देखि. आँख हैं तो. हमने कभी फूल खिलते देंखे. हमने कभी पक्षियों के गीत सुने, कान है तो. क्या कभी हमने चाँद तारों पर नजर दौडाई, आँखें है तो.
अगर हम अंधें होते तो रोते, की है भगवान तूने रोशनी क्यों नहीं दी. मैंने क्या पाप कर दिया ऐसा. तूने मुझे रंग क्यों न देखने दिए. में दुनिया देखना चाहता हूँ. तूने मुझे क्यों ये कष्ट दिया. यह तो हम कहते जरूर अगर अंधें होते तो.
यकीं न हो तो किन्ही अंधों से पूछों वो जरूर कहते होंगे, बहरों से पूछों तो रोते हैं. की हमने ध्वनिं नहीं जानी. हमने संगीत नहीं जाना. गूंगे से पूछों, बोल नहीं सकता. कितना रोता हैं कितना तड़पता हैं भीतर. की काश में भी बोल सकता. मुझे भी कुछ कहना हैं. मुझे भी कोई गीत गुन-गुनाना हैं.
तुम जरा सोचना शुरू करो कितना तुम्हारे पास हैं. और तुम चकित हो जाओगे. इतना हैं की तुम कितना ही धन्यवाद दो, धन्यवाद थोड़ा पड़ेगा. और अकारण मिला हैं सब, तुमने इसे अर्जित नहीं किया हैं. ये उपहार हैं. ये परमात्मा की भेंट हैं.
और इस भेंट के लिए तुमने कभी धन्यवाद भी नही दिया. और हम कहतें की दुःख से मुक्ति कैसे मिले. जब की हम खुद दुःख निर्मित कर रहे हैं. इसलिए हमें आभाव को हटकर भाव को देखना चाहिए, जो हैं उसे देखना चाहिए, फिर खुद से पूछों की जो मिला है क्या में उसके योग्य हूँ.
आभाव को हटाओ. भाव को देखो जो हे उसे देखों जो नहीं हैं उसकी क्या चिंता लेना.
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