धुनिया भूत - अपेक्षा रहित जीवन. Expectations Moral Story For Kids

Short Moral Story On Expectations 

expectation moral story for kids

किसी गांव में एक धुनिया रूई बुनने वाला रहता था वह बडा मेहनती था और हमेशा खुश रहता था. लोग उसके भाग्य से ईष्या करते थे और अक्सर उसे सफेद भूत कहकर चिढाते थे क्योंकि काम करते समय उसे बहुत पसीना आता था और रूई धुनते समय रूई के छोटे-छोटे फोंहे उसके बदन से चिपक जाते थे. 

इसलिए उसका नाम सफेद भूत पड गया था. बच्चे भी उसे सफेद भूत कहकर चिढाते थे. जब भी ऐसा होता धुनिया बनावटी क्रोध दिखाकर चिढाने वाले लोगों के पीछे भागता मगर कुछ दूर भागकर हंसता हुआ वापस आ जाता. 

उसे लोगों के चिढाने पर काफी मजा आता था गुस्सा तो वह दिखावे के लिए करता था. जिस दिन उसे कोई न चिढाता तो उसे बडा दुख होता था. अक्सर लोग उससे पूछते भाई तुम इतने मस्त और सुखी कैसे रहते हो ? तब वह हंसकर कहता - में किसी चीज की इच्छा ही नहीं करता तभी तो सुखी रहता हूं. 

एक दिन एक आदमी उसके पास आया वह धुनिया से जीद करके पूछने लगा - भाई!! धुनिये तुम्हारी मस्ती का राज क्या है ? इस नरक जमाने में भी तुम इतने खुश और मस्त कैंसे रह लेते हो ? पहले तो धुनिये ने उसे टरकाने की कोशिश की मगर जब वह हाथ धोकर उसके पीछे ही पड गया तो उसने उसका रहस्य बताया - 

एक दिन रूई धुनते-धुनते मेरा धनुष टूट गया, मेरा काम बंद हो गया इसलिए मैं फ़ौरन लकडी लेने जंगल पहूंच गया मुझे एक पेड़ दिखाई दिया जिसकी लकडी धनुष के लिए ठीक लगी मेंने पेड के पास जाकर उसके तने पर कुल्हाडी मारी जैंसे ही कुल्हाडी लगी पेड़ से आवाज आई धुनिया भाई, धुनिया भाई, मुझे मत काटो, पहले तो मुझे लगा कि यह मेरा भ्रम हैं भला पेड़ भी कभी बोलते हैं 

इसलिए मैंने फिर पेड़ को काटना शुरू कर दिया पर जैंसे ही कुल्हाडी पेड़ पर लगती तुरंत आवाज आती धुनिया भाई रहम करो मुझे मत काटो. यह आवाज तेज होती गई. लेकिन मैंने भी उसे काटना बंद न किया तब फिर आवाज ने मुझसे प्रार्थना की धुनिया भाई तुम जो चाहो सो मांग लो मगर मुझे छोड दो मुझे मत काटो. 

तुम चाहो तो मैं तुम्हें इस देश का राजकाज भी दे सकता हूं. मैंने वृक्षदेव से कहा - हैं वृक्षदेव! मुझे राज नहीं चाहिए मैं मेहनत से काम करना और ईमादारी से जीना चाहता हूं. इसलिए मुझे दो हाथ और पीछे की ओर दो आंखे और दे दो. 

वृक्षदेव ने मुझे मूंह मांगा वर दे दिया. जब मैं चार हाथ और चार आंख लिये गांव में लौटा तो लोगों ने मुझे प्रेत समझा और मुझे पत्थरों से मारा जो भी देखता वही मुझे पत्थर मारता कुछ लोग मुझे देखकर भयभीत हो गये. 

जब मैं अपने घर में पहूंचा तो मेरी पत्नी भी मुझे देखकर भयभीत हो गई. उसने भी मुझे प्रेत समझा और दूसरे के घर में भाग गई. मेरा तो पत्थरों की चोटों से बूरा हाल था मेरे समझ में नहीं आ रहा था कि में क्या करूं ? 

फिर मैं वापस जंगल में गया फिर मैंने वृक्षदेव से प्रार्थना की - हैं देव!! मेेरे दो हाथ और दो आंख वापस ले लो, उस देव को मेरी हालत पर दया आ गई और उसने मुझे पहले जेंसा कर दिया तब से मैंने सबक लिया कि मनुष्य को ज्यादा इच्छाएं नहीं करना चाहिए मनुष्य की इच्छाएं जितनी कम होंगी वह उतना ही सुखी रहेगा. 

बस मेरी मस्ती का यही राज है. मैं तो रूई धुनते-धुनते बस सफेद भूत ही  रहना चाहता हूं. 

संदेश : जीवन में सुखी रहने का रहस्य इच्छाओं का कम होना है. 

इस दुनिया में सभी लोग अपनी इच्छा को पूरी करने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे है, लेकिन जब उनकी एक इच्छा पूरी हो जाती है तो तुरंत दूसरी इच्छा जाग जाती है. इसलिए कहा जाता है आत्मसंतुष्टि ही सबसे बड़ा धन है. 

सुखी जीवन जीने की सिर्फ यही कला है. कभी किसी चीज की इच्छा मत रखो, कभी दूसरे के ऊपर निर्भर मत रहो. हमेशा अपेक्षा रहित जीवन जियो. अपने घर के छोटे भाई बहनो, बच्चों को भी यही सिख दो की वह अपने जीवन को बिना किसी अपेक्षा के जिये.