Bachhon ki kahaniyan Stories
Sanskarwan Chandu ki bachhon ke liye prernadayak kahani - चंदू संस्कारवान था, गुरूजनों का बहुत सम्मान करता था सभी उससे प्रेम करते थे. चंदू के पिता दिनभर फैरी लगाकर फल बेचा करते थे. चंदू के एक छोटी बहन भी थी, चंदू की पढाई में उसकी मां मदद करती थी पिता की कमाई से घर और स्कूल के खर्चे निकल आते थे.
फल बेचने जाने से पहले चंदू सुबह फलों को थैली में करीने से लगाता. ऐसी बिच चंदू के पिता बरसात में भीगकर बीमार हो गये और ठीक नहीं हुए काफी समय बाद उनकी मृत्यु हो गई. मृत्यु से जहां चंदू के परिवार को मानसिक कष्ट हुआ वहीं उसे आर्थिक तंगी ने भी आ घेरा,
एक-एक पैसे के लिए उन्हें परेशान होना पडता था. मां पहले से ही बीमार थी वह ठैला नहीं लगा सकती थी. चंदू की उम्र कोई आठ साल थी इस काम को पूरी तरह कर पाने में वह भी सक्षम नहीं था पर चंदू बहुत होशियार लडका था वह हरदम एक ही सोच में डूबा रहता कि वह परिवार का सहारा कैसे बनें ?
चिंता के कारण वह भी सुखने लगा उसकी मां उसे दैविक चमत्कारों की कहानीयां सुनाया करती थी. एक दिन चंदू के मन में विचार आया कि क्यों न अपनी समस्या भगवान को बताई जाये उसकी पाठशाला के रास्तें में एक मंदिर पडता था.
चंदू रोज पाठशाला जाते समय उस मंदिर के दरवाजे पर खडा हो जाता और हाथ जोडकर भगवान से प्रार्थना करता हैं भगवान आप सबके दुखों को दूर करते हैं मैं छोटा-सा बालक हूं पूजा करना नहीं जानता पर मैं आपसे विनती करता हूं कि आप मेंरे दुखों को दूर करें.
चंदू को भगवान की प्रार्थना करते कहीं दिन गुजर गये पर चंदू को न तो भगवान ने दर्शन ही दिये और न ही उसके दूख दूर हुए. चंदू को ईष्वर पर अटुट श्रद्धा थी. वह रोजाना मंदिर जाता रहा, वह मंदिर एक देवी का था आखिर देवी इस नन्हे भक्त की भक्ति से प्रसन्न हो गई.
एक रात चंदू अपने बिस्तर पर गहरी नींद में सोया था तब ही उसे लगा कि आकाश से एक तीव्र रोशनी उतर रही है. एक ही क्षण में उसका सारा कमरा उज्जवल प्रकाश से भर गया, कुछ ही समय में उस प्रकाश से एक नन्ही से परी निकली उस परी का रूप वैसा ही था जैसा वह अक्सर किताबों में पढा करता था.
उसके हाथ में एक छडी थी चंदू उस परी को गौर से देखकर गुदगुदाया यह सपना हैं या सच्चाई ?
परी मुस्कुराकर बोली - यह सच हैं चंदू.
चंदू ने बडी व्याकुलता और प्रसन्नता से पूछा- क्या तुम परी हो ?
हां - परी ने मुस्कुराते हुए कहा.
तुम यहां पर .... चंदू अपनी बात पूरी न कर सका,
परी खिलखिला कर बोली - चंदू मुझे देवी मां ने तुम्हारें पास भेजा है.
क्या देवी मां ने ? अबकी बार चंदू ख़ुशी से चिख उठा.
हां चंदू बोलो - तुम्हें क्या चाहिए ?
चंदू बोला - परी अगर तुम सचमुच देवी की दूत हो तो मेरी मां को स्वस्थ कर दो,
परी मुस्कुरा कर बोली - ठीक हैं चंदू अब सुबह जब तुम्हारी मां सो कर उठेगी तो वह बिलकुल स्वस्थ और प्रसन्नचित होगी. पर चंदू मैं तो तुम्हें वरदान देने आयी थी तुमने अपने लिये तो कुछ मांगा ही नहीं.
चंदू सहज भाव से बोला- परी अगर मेरी मां ठीक होगी तो वह मेरी देखभाल स्वयं कर लेगी, फिर मां-बाप की सेवा करनी चाहिए. बच्चों पर सबसे पहला अधिकार मां का होता है. इसलिए मैंने मां के स्वस्थ होने का वरदान आपसे मांग लिया.
परी बोली- चंदू मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं तुम मुझसे एक वरदान और मांग लो.
चंदू बोला - परी मुझे सदबुद्धि दो ताकि मैं बडा होकर नैकी, ईमानदारी और सच्चाई के मार्ग पर चल सकूं.
परी बहुत प्रसन्न हुई बोली - ऐसा ही होगा चंदू. यह अंगुठी तुम अपने पास रख लो. इस अंगुठी को पहन कर जो इच्छा करोगे वह पूरी हो जायेगी पर जिस दिन तुमने इसका गलत कामों के लिए प्रयोग किया तो इसकी शक्ति उसी दिन खत्म हो जायेगी. यह कहकर जाने से पूर्व परी ने चंदू से कहा.
देखो चंदू इसका जिक्र तुम किसी से मत करना. इतना कहने के बाद परी गायब हो गई फिर प्रकाश में चंदू ने देखा कि उसके हाथों में अंगुठी थी, वह इस बात को मां से कहना चाहता था. पर परी की बात याद आते ही वह शांत हो गया. सुबह मां पूर्ण स्वस्थ नजर आयी. उस दिन से चंदू और उसका परिवार फिर से सुखी हो गया.
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इस कहानी से शिक्षा मिलती हैं कि हमें भी चंदू की तरह संस्कारवान बनना चाहिए.Also Read :
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