किसी देश का राजकुमार जंगल से होकर गुजर रहा था कि रास्ते में एक गीदड आ टपका, राजकुमार ने उससे कहा - ऐ गीदड रास्ते से हट. मगर ढीठ गीदड टस्स से मस्स नही हुआ. राजकुमार को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन झगडा न करके बगल से गुजर गयें.
शाम होते-होते वह एक शहर में पहूंचे और पंसारी के यहां रात गुजारने की प्रार्थना की, पंसारी सहमत हो गया राजकुमार ने घोडा उसके घर के बाहर ही खुटें से बांध दिया. सुबह पंसारी ने उसे जगा कर कहा कि देखों उसके खुंटे ने एक घोडे को पैदा किया है,
राजकुमार बोला- यह घोडा तो मेरा है इस पर पंसारी बोला - अगर तुम्हारा हैं तो तुमने रात ही मुझे क्यों नहीं बताया ? तुम झुठ बोलते हो. घोडे को लेकर दोनों में तू-तू मैं-मैं हो गई.
मामला अदालत तक पहूंचा, अदालत में पंसारी के पड़ोसियों ने पंसारी के पक्ष में गवाही दी, न्यायाधीष ने राजकुमार से भी कोई गवाह पेश करने को कहा लेकिन उसके पास गवाह कहां था ? तभी उसे जंगल में मिले गीदड की याद आई.
वह न्यायधीश की आज्ञा लेकर उसके पास गया और उससे गवाही देने की प्रार्थना की. गीदड ने कहा- ठीक हैं मैं कल आउंगा. अगले दिन गीदड अदालत में उस समय पहूंचा जब न्यायधीश फैंसला सुनाने जा रहे थे.
पहूंच कर गीदड बोला - क्षमा करें हूजूर मैं राजकुमार का गवाह हूं और यह घोडा इसी का है. तुम्हारें पास कोई सबूत हैं ? सरकार सबूत तो मेरे पास था नदी में आग लगने के कारण वह जल गया. उसकी बात सुनकर न्यायधीश गुस्से से बोला - क्या बकवास करता है ? कभी नदी में भी आग लगती है ?
सरकार जब खुंटे से घोडा पैदा हो सकता हैं तो नदी में आग क्यों नही लग सकती. यह सुनते ही न्यायधीश उसकी बात समझ गये. उन्होंने फौरन वह घोडा राजकुमार को दिलवाया और पंसारी को हवालात में भेज दिया. विजय सदैव सत्य की ही होती है.
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